भारत रत्न जैसे सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार ने
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान (ustad bismillah khan) का नवाजा गया था. 21 अगस्त को बिस्मिल्लाह खान ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा (ustad bismillah khan death anniversary) कहा था. बिहार के डुमरांव के ठठेरी बाजार में बिस्मिल्लाह खान का जन्म हुआ था. बिस्मिल्लाह खान को शहनाई का जादूगर कहा जाता था. आज हम आपको उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के जीवन की कुछ खास बातों से रूबरू करवाते हैं.
कहते हैं कि जब 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली थी तो बिस्मिल्लाह खान की शहनाई की धुन दिल्ली में बजी थी.कहते हैं 26 जनवरी को भी उनकी धुन ने चार चांद लगाए थे.
बिस्मिल्लाह खान के अवॉर्ड्स (death anniversary award)
न्यूयार्क के वर्ल्ड म्यूजिक इंस्टिट्यूट से लेकर कांस फिल्म फेस्टिवल तक में बिस्मिल्लाह खान को कई अवॉर्ड से नवाजा गया था. इसमें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1956), पद्मश्री (1961), पद्मभूषण (1968), पद्म विभूषण (1980), फेलो ऑफ संगीत नाटक अकादमी (1994), भारत रत्न (2001) जैसा हर एक अवॉर्ड उन्होंने अपने नाम किया था.
कैसे पड़ा था नाम
कहते हैं जब उनका जन्म हुआ था तो बिस्मिल्लाह खान को देखते ही उनरे दादा के मुंह से निकला, बिस्मिल्लाह. बिहार में जन्मे उस्ताद छोटी उम्र में ही मामा संग वाराणसी आ गए थे और यहां से अपने संगीद के जादू से सबको मोहित करते थे.
वाराणसी से जाने से किया था इंकार
एक वक्त ऐसा आया जब शहनाई के इस जादूगर को मुंबई आकर वहीं, बसने का ऑफर मिला था. तो इस पर उस्ताद ने कहा था कि अमा यार ले तो जाओगे, लेकिन वहां गंगा कहां से लाओगे. कहा जाता है कि उन्होंने आखिरी सांस तक कभी वाराणसी को नहीं छोड़ा था. शायद ही आपको बता हो कि आकाशवाणी और दूरदर्शन पर सुबह बजने वाली मंगल ध्वनि उस्ताद की शहनाई की ही धुन थी.
जात पात से थे परे
बिस्मिल्लाह खान उदारवादी विचारों के धनी थे. उनका कहना था कि संगीत ही हर चीज है और जिसमें जात-पात कुछ नहीं होता है. उनके अनुसार मजहब ना बुरा होता है और ही किसी के लिए बुरा सोचता है. यही कारण है कि वह मंदिरों में भी जाता करते थे.
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