पाकिस्तान की जेल में करीब 8 सालों तक रहने वाला खतरनाक आतंकवादी और तालिबान का संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर अफगानिस्तान का अगला राष्ट्रपति बन सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में ऐसी चर्चा है कि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को तालिबान अफगानिस्तान का अगला राष्ट्रपति नियुक्त कर सकता है। अफगानिस्तान पर अब तालिबान का राज स्थापित हो चुका है और राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग चुके हैं। ऐसे में अब तय हो गया है कि अफगानिस्तान में अगला सरकार तालिबान का होने वाला है। ऐसे में आईये जानते हैं कौन है मुल्ला अब्दुल गनी बरादर…जो अफगानिस्तान का अगला राष्ट्रपति बन सकता है।
कौन है मुल्ला अब्दुल गनी बरादर?
तालिबान की स्थापना मुल्ला मोहम्मद उमर ने की थी और उसका सबसे बड़ा सहयोगी था मुल्ला अब्दुल गनी बरादर। जिसका जन्म अफगानिस्तान के उरूजगान प्रांत में 1968 में हुआ था। हैबतुल्लाह अखुंदजादा और मुल्ला उमर के बेटे के बाद तालिबान में इसी का स्थान आता है और एक वक्त में पूरी दुनिया के लिए मोस्ट वांटेड आ’तं’क’वादी हुआ करता था। बरादर अब तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख है और उस शांति वार्ता दल का हिस्सा है, जिसे तालिबान ने दोहा में राजनीतिक समझौते की कोशिश करने के लिए भेजा था। आज भी तालिबान की तरफ से हर राजनीतिक बातचीत में मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ही हिस्सा लेता है। पिछले महीने भी ये चीन गया था, जहां इसने चीन के विदेश मंत्री के साथ साथ कई बड़े नेताओं के साथ मुलाकात की थी। तालिबान की राजनीति रणनीति क्या होगी, उसका फैसला मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ही करता है। हालांकि, अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया की कोशिश पूरी तरह से फेल रही है।
2010 में हुआ था गिरफ्तार
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को 2010 में आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त आईएसआई ने गिरफ्तार किया था और बताया जाता है कि तत्कालीन पाकिस्तान सरकार से इसके मतभेद थे। लेकिन, 2018 में जब इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने तो उनका रूख तालिबान को लेकर पूरी तरह से अलग था। इमरान खान को एक कट्टरपंथी सोच का नेता माना जाता है और उन्होंने पाकिस्तान की सत्ता संभालने के 2 महीने बाद ही मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को पाकिस्तान जेल से रिहा कर दिया था। पाकिस्तान जेल से रिहा होने के बाद मुल्ला अब्दुल गनी बरादर वापस अफगानिस्तान आ गया और फिर वो वर्तमान तालिबान के सबसे बड़े चेहरों में से एक है और अब अफगानिस्तान का राष्ट्रपति भी बनाया जा सकता है।
रूस के खिलाफ छेड़ी थी लड़ाई
मुल्ला अब्दुल गनी बरादार ने 1994 में तालिबान की स्थापना की थी। इंटरपोल का कहना है कि उनका जन्म अफगानिस्तान के उरुजगान प्रांत के वीतमक गांव में हुआ था और ये दुर्रानी जनजाति से संबंध रखता है। बरादर उस अफगान मुजाहिदीन का हिस्सा था, जिसने 1980 के दशक के दौरान सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। रूसियों को देश से बाहर निकालने के बाद अफगानिस्तान में बने अलग अलग सरदारों के ग्रुप में लड़ाई छिड़ गई और फिर बरादर ने अपने बहनोई, मोहम्मद उमर और एक पूर्व कमांडर के साथ कंधार में एक मदरसा स्थापित कर लिया। यहीं पर उसने मुल्ला उमर के साथ मिलकर तालिबान की स्थापना की थी, जिसका मकसद अफगानिस्तान में मुस्लिम शासन की स्थापना करनी थी।
अमेरिका से मिली भरपूर मदद
रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान की स्थापना के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआई ने तालिबान की खुफिया मदद करनी शुरू कर दी और फिर अगले दो सालों में ही तालिबान अफगानिस्ता में एक बड़ी शक्ति बन गया। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि सीआईए ने तालिबान तक पाकिस्तान के जरिए हथियार पहुंचाए और 1996 तक तालिबान ने काबुल समेत अफगानिस्तान के कई प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा कर लिया। मुल्ला उमर के डिप्टी के रूप में कार्यरत बरादर ने तब तक एक सम्मानित राजनीतिक नेता और प्रभावी सैन्य रणनीतिकार के रूप में प्रतिष्ठा विकसित कर ली थी।
तालिबानी राज में था उप रक्षा मंत्री
1996 में तालिबान का कब्जा अफगानिस्तान पर हो गया था और बरादर उस सरकार में काफी अहम भूमिका निभा रहा था। वह अफगानिस्तान का उप रक्षा मंत्री होने के साथ साथ मुल्ला उमर का बेहद करीबी और कई प्रशासनिक पदों का काम संभाल रहा था। लेकिन, 2001 में जब तालिबान ने ओसामा बिन लादेन को अमेरिका के हवाले करने से इनकार कर लिया था, तो फिर अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया और तालिबान की सत्ता अफगानिस्तान में खत्म हो गई।
शांति टीम का हिस्सा बना
रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान की जेल से रिहा होने के बाद ये तालिबान की तरफ से उस बातचीत टीम का हिस्सा बन गया, जो अफगानिस्तान में शांति स्थापना के लिए बनाई गई थी। बरादर ने फरवरी 2020 में अमेरिका के साथ ‘ट्रम्प-तालिबान’ दोहा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन पिछले कुछ महीनों से पता चला है कि तालिबान का संधि में निर्धारित दायित्वों का पालन करने का कोई वास्तविक इरादा नहीं था। वो असल में अमेरिका को धोखे से देश से बाहर कर फिर से अफगानिस्तान पर कब्जा जमाना चाहता था। और अब तालिबान अपने मकसद में कामयाब हो चुका है और माना जा रहा है कि अफगानिस्तान का अगला राष्ट्रपति बरादर ही बनेगा।
साभार- वन इंडिया