नसीरुद्दीन शाह ने अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे पर कहा था
कि ‘ कुछ मुस्लमानों’ तालिबान के आने पर खुश हैं, उन्हें अपने आप से पूछना चाहिए कि उन्हें बदलाव चाहिए, मॉडर्न इस्लाम चाहिए या वो बीते दशकों की बर्बरता के साथ रहना चाहते हैं। इस बात से कुछ कट्टर इस्लाम फॉलोवर्स को चोट पहुंची और नसीर अपने ही कौम के कुछ लोगों की नाराजगी का कारण बन गए।
नसीर अब भी अपने बयान पर कायम हैं और एक इंटरव्यू में उन्होंने इस्लाम के साथ कुरान पर चर्चा की और कहा कि इस्लाम और कुरान में लिखी बातों को धर्म के ठेकेदार अपने हिसाब से तोड़-मरोड़कर प्रयोग करते हैं।
नसीर ने कहा कि उन्हें हिजाब से तकलीफ है, क्योंकि इस्लाम में महिलाओं को बुर्का पहनाने का कहीं भी जिक्र नहीं हैं। इसे भी पढ़ें-नसीरुद्दीन शाह की मां ने रत्ना पाठक से शादी करने पर बेटे सा पूछा था- क्या वह इस्लाम कबूल करेगी?
नसीर का कहना था कि कुरान में हिजाब का जिक्र है, लेकिन ये हिजाब नजरों से मायने रखता है। यानी नजर में शर्म का होना, लेकिन धर्म के ठेकेदारों ने इसे अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर पेश कर दिया।
नसीर ने कहा कि तंबू की तरह महिलाओं को ऊपर से नीचे तक काले लिबास में ढका जाना इस्लाम में नहीं लिखा। इसे भी पढ़ें- इस शादी में न फेरे हुए थे, न पढ़ी गई थी निकाह, खास अंदाज में की थी नसीरुद्दीन शाह ने रत्ना पाठक से शादी
नसीर का कहना था कि भारतीय इस्लाम हमेशा दुनिया भरके इस्लाम से अलग रहा है और ख़ुदा वो वक्त न लाए कि वो इतना बदल जाए कि हम इसे पहचान भी न सकें। इसे भी पढ़ें- नसीरुद्दीन शाह के दादा को इनाम में मिली थी मेरठ की जागीर, अंग्रेजी हुकुमत का दिया था साथ
नसीर ने कहा था कि वह एक भारतीय मुसलमान हैं और जैसा उनका रिश्ता अल्लाह मियां बेहद बेतक्कलुफ़ है। उन्हें सियासी मज़हब की कोई ज़रूरत नहीं है।